राकेश कुमार व्यक्तित्व विकास के लिए लेखन करते हैं उनकी यह कृति जीवंत उदाहरण से सिखाती है. आज ऐसे लेखन की आवश्यकता है, जो हताशा में डूबे मनुष्य को उबार कर नई दिशा दे. गुमराह करने वाले अनेक हैं लेकिन राह दिखाने वाले कम होते हैं. वे ऐसे लेखक हैं जो मार्ग दिखाते हैं. आत्मीय संस्मरण आख्यान शैली में हैं जो परेशान पाठक को ऊर्जा देगा, आशा का संचार करेगा. बेबाक और हृदयग्राही संस्मरण’ जीवन के संघर्षों की प्रामाणिक रंजक प्रस्तुति है. युवक और युवती विवाह के बंधन में बंधते ही हैं, लेकिन उस पूरे घटना क्रम को कभी हिम्मत न हारने का संदेश देते हुए रोचक शैली में प्रस्तुत करना एक कला है..फिल्मी गीतों का सुंदर प्रयोग संस्मरण की रंजकता बढ़ाता है जबकि नायिका रामचरितमानस की चौपाइयों की प्रेरणा पाती है. मथुरा की संस्कृति, दिल्ली का वैभव और जबलपुर भेड़ाघाट तथा अमरकंटक का जीवंत वर्णन है. हृदय रोग का पता चलने पर लेखक की चिंता का मर्मस्पर्शी वर्णन भावुक कर देने वाला है. अष्टांग योग के विशेषज्ञ गुरु जी पाठकों के लिए उपयोगी रोगमुक्त प्राणायाम सिखाते है.
अधिकांश संस्मरण प्रस्तुतीकरण की जड़ता से अपठनीय है. संस्मरण प्रवाहमान नदी की तरह बहने वाला होना चाहिए कि पाठक पढ़ता चला जाए. राकेश सिनेमाई अंदाज में यही कर रहे हैं – रोचक विनोदपूर्ण, ज्ञानवर्धक. सूचनाएँ हैं. विवाहोपरांत भ्रमण तथा पर्यटन स्थलों का वर्णनात्मक-चित्रण और मनमोहक वर्णन पाठक के चेहरे पर मुस्कान लाएगा. इंदु का राकेश के साथ बातचीत के दौरान आत्मीय और बिंदास-सा व्यवहार दांपत्य जीवन की मधुरता को दर्शाने वाला है. “मथुरा की गाय अब जबलपुर का पानी पी कर रानी दुर्गावती बन चुकी है.” जैसी रोचक पंचलाइनें संस्मरण की शोभा बनी हुई हैं.
असाध्य रोग, अस्पताल के खर्च, असुविधाएं, हाथ से फिसलता समय,एक क्रूर खलनायक है जो चिंतित करता है किन्तु तोड़ क्यों नहीं पाता? यही रहस्य इसे पठनीय बना देता है।
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