Description

मेरा नाम काया है। मेरी कहानी सिर्फ़ मेरी नहीं, उन तमाम कायाओं की भी है, जो अपनी काया ( देह ) की पहचान के लिए भटक रही हैं। सोचो, हम तुमसे क्या चाहते हैं? तुमसे, तुमसे और तुमसे? परिवार से? समाज से? प्रेम ही तो। प्रेम ही तो प्यास है। प्रेम ही तो उजास है। एक प्रेम की तलाश ही तो अनंत में भटकाती है। पर प्रेम पीड़ा भी तो है और पीड़ा है तो क्या प्रेम न करें? दुख है तो क्या डर जाएँ? कैसे ख़ुद को भूल जाएँ, धोखा दे दें ख़ुद को कि यह ‘काया’ हमसे कुछ और माँग रही है? लेस्बियंस हैं तो क्या आत्मा की पुकार को अनदेखा कर दें, मार दें ख़ुद को और गले में पत्थर बाँध डुबो दें किसी अंधकार में। नहीं, मैं ख़ुद को नहीं मार सकती। यह नहीं होगा। अब नहीं होगा। यह ‘काया’ मेरी है। मेरे हक़ से कोई इंकार नहीं कर सकता, न तुम, न तुम और न तुम। समलैंगिक रिश्तों पर आधारित एक संवेदनशील उपन्यास।

Additional Information
Weight 0.14 kg
Dimensions 20 × 13 × 1.2 cm
Binding Type

Paperback

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About Author

हिंदी साहित्य में, कवि, कथाकार और उपन्यासकार के तौर पर एक विशिष्ट पहचान बनाने वालीं, जया जादवानी पिछले तीन दशकों से सृजनरत हैं। आपकी रचनात्मक यात्रा कथ्य के विशिष्ट स्वरूप, विरल किरदारों के दुर्लभ चित्र व शिल्प और भाषा के नए आस्वाद के लिए जानी जाती है। अपनी रचनाओं में आप हमेशा जोख़िम उठाती हैं,…

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